...

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बटवारा का माहौल

तन्हाइयों का शोर फिर से,
शहर में गूंजाने लगता है|
जाने क्या हुआ क्या यह,
सोच रहे हैं डर ही डर में|
कुछ स्वास्थ्य के सम्मुख,
सब आंगन में बैठ गए,
बटवारा का माहौल जबसे,
मेरे घर में तैयार हो गया|

इस कमरे से ,उस दुकान तक,
मकान के छत को बांट दिया|
अलमारी में रखकर माँ ने
कुछ कपड़े तक को छांट दिया,
कैसा दस्तूर है दुनिया का यह,
किसने इसे दोबारा बनाया है ?
घर में रखी रोटी तक,
मोहरे में किसने काटा?

जब घर में रखी हर चीज की,
होश में आते हैं|
तब सोच मैं डूब गए माँ -बाप,
किसकी है हम पर जिम्मेदारी?
बिलख बिलख कर माँ रोई
बाप अंदर से कुछ रोया था,
आकाश ने अपने सारे,
आकाश को आज खोया था|

कल तक जो साथ है, वह सारे
धब्बे एकदम अलग है|
घर के एकता पर, आज यू,
संकट के बादल मंदराये है|
बटवारिया की कहानियां जो भी
पढी थी कभी किताबों में,
आप सदस्यता बन जाती हूँ, वह हमारी
आंखों के सामने आती है|

# तरन्नुम# रीटको आप# रीट को चैलेंज#