...

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कैसे दीप जलाऊंँ

रूंधे कंठ उद्विग्न हृदय से राग खुशी के कैसे गाऊँ
तृणता से कंपते हाथों से कैसे उज्वल दीप जलाऊं
जब साथी भूखे सोए हों फिर कैसे मैं हर्ष मनाऊँ
हो परोस का घर अंधियारा, मैं कैसे त्यौहार मनाऊं
कैसे दीप जलाऊंँ, मैं कैसे दीप जलाऊं....
उनके महलों में है जगमग, ये झोपड़ी अंधेड़ी
उत देखो चंहु ओर रौशनी, इत अंधियार घनेरी
उस घर में चांँदी की खन-खन,इस घर में सन्नाटा
इसके चूल्हे आग नहीं,वहांँ बनता पुड़ी परांठा
असमानताएं हैं इतनी मैं क्या-क्या गिनवाऊंँ
कैसे दीप जलाऊंँ, मैं कैसे दीप जलाऊं....
दीपावली पर्व खुशियों का, क्यों न साथ मनायें
जो निर्धन, गरीब हैं उनको बढ़कर गले लगाएं
जो हैं क्षमताहीन,कभी उनके भी आंँसू पोछें
खुद की खातिर खूब जिया,उनके बारे भी सोचें
जब गरीब खुश हो जाएं, तब ही तो मैं हर्षाऊंँ
कैसे दीप जलाऊंँ, मैं कैसे दीप जलाऊं....
अपने और उनके बच्चे जब साथ-साथ खेलेंगे
साथ जलाएंगे फुलझड़ियां,साथ पठाके फोड़ेंगे
आंँखों में उनकी हों खुशियांँ,सबको गले लगाऊंँ
प्रेम और सौहार्द्र सहित फिर मिल-जुलकर ये गाऊंँ
ऐसे दीप जलाऊंँ, मैं ऐसे दीप जलाऊं....

© Kaushal