...

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लड़ाई समाज के खिलाफ
इस समाज को कुछ सिखाना चाहती हूँ
लड़कियों के भी सपनें और ख्वाइशें होती हैं
ये बताना चाहती हुँ
ये समाज जो अब तक सिखाता रहा मुझे
मेरी ज़िंदगी जीने के सलीक़े
इसी समाज की हर बंदिश को आज तोड़ देना चाहती हूँ
अब बस बहुत हुआ.....
नहीं जिया जाता अब घुट घुट कर
मुझे सजा मंजूर है अब खुद के लिए जीने की
पर समाज की बनाई बंदिशें अब चुभने लगी हैं हर दिन
अब मैं खुद की कुर्बानी नही दूंगी समाज की
नज़रो में सही बने रहने के लिए
अब मुझे उड़ना हैं अपने सपनो को नए पंख देने हैं
लड़कियों को समाज ने हर रिश्ता जोड़े रखने की
जिमेदारी दी हैं
पर मंजूर नही अब मुझे कोई सौदा खुद से
अब मंजूर नही मुझे खुद की कुर्बानी उन रिश्तो में जिनका
खत्म हो जाना ही बेहतर हैं
नही चाहिए अब मुझे कोई बंदिश आजाद होने हैं
मुझे इन समाज की बेड़ियों से
अब मैं हर बंदिश तोड़ लड़की होने का नया प्रमाण दूंगी
इस समाज को कुछ सीखना चाहती हूँ
लड़कियों के भी सपने और ख्वाइशें होती हैं
ये बताना चाहती हुँ