...

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क्रोध
शांत कर लो स्वयं को,
और भूल जाओ क्रोध को!
शांति से कर विचार,
धो डालो सारे रोष को!
मानती हूँ क्रोध आना,
मनुष्य की नियति सही!
किन्तु इससे आज तक,
मिल पाया है कुछ भी कहीं!
हो कुपित 'जड़'बुद्धि होती,
ज्ञान -ध्यान बिसरता है!
स्वयं को ही झोंकता,
क्रोधाग्नि में नर जलता है!
ये रिपु जो हम में निहित,
तब न कुछ कर पायेगा!
प्रेम की तुम लौ लगा लो,
क्रोध खुद मर जायेगा!!
#डायरी के पन्नों से
#क्रोध

© दीp