...

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मंज़िल , जो बिना राहों के अधूरी है.
ये रास्ते हमसे कुछ कहते हैं,
ना जाने क्यूँ ये ग़ुम रहते हैं,
मेरी मंज़िल का कोई अंत नहीं..
पर रास्ते हमेशा संग रहते हैं।

राही और राह का मेल ग़जब है,
किस्मत और रब का खेल अजब है,
कठनाइयाँ कितनी भी हो, सब सहते हैं..
ये रास्ते हमसे कुछ कहते हैं।

प्रेम के फूल खिले इन राहों में,
कई जीवनसंगी मिले इन राहों में,
मिल कर वो फिर से अलग रहते हैं..
ये रास्ते हमसे कुछ कहते हैं।

एक राह मिले तो, दूसरी छूट जाती हैं
मंजिल भी कभी कभी राहों से रूठ जाती है,
इसमे तो काइयों के किले ढहते हैं..
ये रास्ते हमसे कुछ कहते हैं।

© Shivay_ke_raaz