" सकल जगत "
सकल जगत में दुख व्याप्त है
हर तरफ़ पीड़ा व्याप्त है
ये मृत्यु जगत है
जन्म लेते ही दुख का आगमन होता है
कष्टों से बंध जाते हैं।
कहते हैं कि ईश्वर ने हम सबको रचा है
तो वह ईश्वर कहां है
किसी को इक मुट्ठी भर चावल से
परिवार का गुज़ारा करता है
इक तरफ़ लोग लज़ीज़ पकवान खाता है,
इतनी असमानता फ़िर क्यूं
जहां सिर्फ़ मनुष्य लालच, द्वेष, ईर्ष्या,...
हर तरफ़ पीड़ा व्याप्त है
ये मृत्यु जगत है
जन्म लेते ही दुख का आगमन होता है
कष्टों से बंध जाते हैं।
कहते हैं कि ईश्वर ने हम सबको रचा है
तो वह ईश्वर कहां है
किसी को इक मुट्ठी भर चावल से
परिवार का गुज़ारा करता है
इक तरफ़ लोग लज़ीज़ पकवान खाता है,
इतनी असमानता फ़िर क्यूं
जहां सिर्फ़ मनुष्य लालच, द्वेष, ईर्ष्या,...