...

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तुम कोई समंदर तो नही।
क्यो हर ज़गह हम तुम्हे ही तलाशें,
तुम कोई खुबसूरत मंजर तो नही।

बहुत डूब चुके है तुम्हारी यादों में,
इंसान हो तुम,कोई समंदर तो नही।

क्यू डरते हो मेरे देखने से भी ज़नाब,
येआँखे ही तो है कोई खंजर तो नही।

तुम कहोगे कुछ भी हम सुनते रहे बस,
ज़नाब ये दिल है मेरा कोई खंडर तो नही।





© "अभिलाषा"खरे"