एक अरसा
एक अरसा हो गया उस शख्स को मरे हुए
जिसने कभी तुम पर
महोब्बत कुर्बान की थी
तेरे जाने के तुरंत बाद वो भी गुजर गया
कभी जाओगे नही
तुमने भी जुबान की थी
गर चार दिन की और जिंदगी मिल भी जाती तो
क्या करता, उसने
पेश ए खिदमत जान की थी
यूं आकर चले जाना तेरा इश्क तो नही था
तेरी नियत शायद किसी
अहसान की ही थी
थोड़ा कसूर दिल का थोड़ा आंखो का भी था
तमाम गुस्ताखी थोड़ी
उस नादान की थी
रेत सा फिसल गया वो मेरे हाथ से इस कदर
नींव हिल गई सारी
मेरे मकान की थी
एक अरसा हो गया उस शख्स को मरे हुए
जिसने कभी तुम पर
महोब्बत कुर्बान की थी
© शायर मिजाज
जिसने कभी तुम पर
महोब्बत कुर्बान की थी
तेरे जाने के तुरंत बाद वो भी गुजर गया
कभी जाओगे नही
तुमने भी जुबान की थी
गर चार दिन की और जिंदगी मिल भी जाती तो
क्या करता, उसने
पेश ए खिदमत जान की थी
यूं आकर चले जाना तेरा इश्क तो नही था
तेरी नियत शायद किसी
अहसान की ही थी
थोड़ा कसूर दिल का थोड़ा आंखो का भी था
तमाम गुस्ताखी थोड़ी
उस नादान की थी
रेत सा फिसल गया वो मेरे हाथ से इस कदर
नींव हिल गई सारी
मेरे मकान की थी
एक अरसा हो गया उस शख्स को मरे हुए
जिसने कभी तुम पर
महोब्बत कुर्बान की थी
© शायर मिजाज