जोगन ...
न जानूं
योग जाप मैं
न मानूं
पुण्य पाप मैं
न हुं फ़कीर मैं
न हुं पंडित कोई
सिर्फ पी का दर भाये
न पाऊं वो सुकून कहीं।
चादर सजातीं रहूं
जोबन की शमा जलातीं रहूं
न जानूं भोग कोई
सिर्फ लाज, बैचेनी, इंतज़ार
का भोग लगाऊं
सिर्फ पी की इबादत करूं
न पाऊं वो ख़ुदा कहीं।
न जानूं
रिश्ते नाते...
योग जाप मैं
न मानूं
पुण्य पाप मैं
न हुं फ़कीर मैं
न हुं पंडित कोई
सिर्फ पी का दर भाये
न पाऊं वो सुकून कहीं।
चादर सजातीं रहूं
जोबन की शमा जलातीं रहूं
न जानूं भोग कोई
सिर्फ लाज, बैचेनी, इंतज़ार
का भोग लगाऊं
सिर्फ पी की इबादत करूं
न पाऊं वो ख़ुदा कहीं।
न जानूं
रिश्ते नाते...