...

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सच्च है या कहनी?
कोई ना जाने की है,
यह कोई मनगढ़ंत कहानी,
या है यह कोई अनकही सच्चाई।

बात है यह सदियों पुरानी,
धरती पर जन्म लिया,
एक मानवरूपी दानव ने।

करता था वो लाचारो का शौशन,
करता था वो दूरबलो पर अत्याचार,
दिल था उसका जैसे पत्थर कोई।

जब भर गया उसके पाप का घड़ा,
तब उस में सद्बुद्धि आई,
ढूंढने लगा अपने पापों से पिछा छुड़ाने का उपाय।

लगाईं उस ने गंगा में डुबकी,
धुल गये उसके सारे पाप,
हो गई उसे मन की शांति।

पर क्या था पापों से पीछा छुड़ाना इतना आसान?
क्या सच में था उसे अपने दुष्कर्म का पछतावा?
क्या इतना आसान है पापों का पश्चाताप?

आया गर्मी का मौसम,
सूख गए नदिया सारी,
कुछ हद तक सुख गई गंगा मां भी।

कुछ दिनों बाद आए काले मेघ,
सब की प्यास बुझाने,
हर तरफ हरियाली की चादर ओढ़ने,

जब बरस रहा था हर जगह पानी,
तब कुछ बदल आए उस पापी को बिगाने भी,
और छुड गए उसके आंगन में सारे पाप संघ तोडा सा पानी।

कोई ना जाने की है,
यह कोई मनगढ़ंत कहानी,
या है यह कोई अनकही सच्चाई।

© Hidden Writer