बचपन
आज भी मैं जब छोटे-छोटे,
बच्चों को खेलते हुए देखती हूं,
तो सोचती हूं क्यों रखा,
मैंने कदम जवानी में,
बचपन को छोड़कर,
मन करता है वापस लौट जाऊं,
बचपन के उस दौर में,
जहां ना कोई चिंता थी,
और ना ही डर था,
सिर्फ आनंद ही आनंद था।
बच्चों को खेलते हुए देखती हूं,
तो सोचती हूं क्यों रखा,
मैंने कदम जवानी में,
बचपन को छोड़कर,
मन करता है वापस लौट जाऊं,
बचपन के उस दौर में,
जहां ना कोई चिंता थी,
और ना ही डर था,
सिर्फ आनंद ही आनंद था।
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