...

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लफ़्ज़ों का मरहम
लफ्जों का मरहम तुम ऐसे लगाते
मुझे दर्द न हुआ तुम ऐसे बताते ।।

घाव तुम ही देते हर बार
और घाव पे मरहम तुम्हीं लगाते ।।

कभी मैं रूठू तो तुम ना मानते
फिर दो दिन बाद लफ्जों का मरहम लगाते।।

मेरी शैतानियों से तुम हो जाते परेशान
फिर भी तुम कहते तु है मेरी जान ।।

तेरी शायरी मेरा जीकर न होता
पर तेरे दिल में मेरा राज ही होता ।।