...

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एक अधूरी ख्वाहिश......
ढलती उम्र में,
ढलती शाम का
हर ढलता सुरज
तुम्हारे साथ
छत पर बैठकर
देखने की
मेरी ख्वाहिश,
जो तुमसे
संभाली ना गयी,
देखो ना...
वो आज भी
मुकम्मल होने...