...

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प्रिय बसंत
मिटे प्रतीक्षा के दुर्वह क्षण,
अभिवादन करता भू का मन !
दीप्त दिशाओं के वातायन, प्रीति सांस-सा मलय समीरण, चंचल नील, नवल भू यौवन,
फिर वसंत की आत्मा आई,
आम्र भौर में गूंथ स्वर्ण कण, किंशुक को कर ज्वाल वसन तन...