...

11 views

जनहित की जड़ की बात - 16
दुनिया में छाने के गीत गा रहे,
भुख में 107 नें 94 पे आ रहे !
स्वार्थ भरी नीयत के कारण,
नियोजन कर ही न पा रहे !!

अन्न जल साधन कम नहीं,
भूखे को भोजन का दम नहीं !
किसी में जनहित का मर्म नहीं
स्वहित जपने में शर्म नहीं !!

चुनाव लड़ते आरोपी अपराधी,
बुझाते रहते जनहित की बाती !
नित नई साजिशें रची जाती,
जन जीवन मौत सदृश बनाती !!

जनता मदद बिन जी न पाती,
मदद हेतु इनके ही दर पे जाती !
छोटी मोटी मदद भी जुटाती,
मदद ले इनकी गुलाम बन जाती !!

हर बार का वोट तय हो जाता,
अपराधी सहज जीत के आता !
यही सिलसिला चलता जाता,
दोष जन के सर मड़ दिया जाता !!

अपने पैर कुल्हाड़ी कोई न मारता,
जहर फैलने के ड़र से पैर कटाता !
जन पंहुच से दूर प्रहरी न्यायपालिका,
सरेआम नीलाम है आज पत्रकारिता !!

सूचना अधिकार पर हो रहे वार,
प्रहरियों पर भी वार लगातार !
लोकपाल की नहीं साज संवार,
लोकतंत्र हो चुका आज तार तार !!

जड़मूल से जपना होगा जनहित,
दस बीस सालों में सही होगा गणित !
इस पीढ़ी में नहीं तो अगली में सही,
होकर रहेगा जनहित चमन लहलहित !!

- आवेश हिन्दुस्तानी 21.10.2020