...

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असहाय
न महावीर है, न बुद्ध है
कहा मानवता का वजूद ढूंढूं ?
कहा करुणा का भाव देखूं ?
कहा अहिंसा का पाठ पढूं ?

यहा पग-पग पर छल-कपट
यहा जन-जन में धृणा-तृष्णा ,
यहा मन-मन में ईर्ष्या-द्वेष
यहां क्षण-क्षण में मिथ्या रोग ।

कहा पाऊं सत्य-प्रेम-विश्वास
कहा देखूं निस्वार्थ सेवा भाव
यहां इंसान के बदलते व्यवहारों में
मैं अकेला निसहाय, नि:स्तब्ध हूं ।

कभी धरा का सुंदर प्राणी था
हंसता-खेलता-कूदता-दौड़ता हुआ ,
निस्वार्थ खुशियां बांटता हुआ
आजकल भीड़ का...