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कन्या भ्रूण हत्या - कोख में न मारो बाबुल प्यारे…
माँ की कोख से एक बेटी की बातचीत अपने पिता के साथ

मैं हूँ लाडली तुम्हारी, कोख में न मारो बाबुल प्यारे।
सृष्टि को रचाने वारी, कोख में न मारो बाबुल प्यारे।

जग में आऊँ, खुशियां लाऊँ,
खुद की किस्मत का खाऊँ।
घर का सारा काम करूँ,
बैठा के खिलाऊँ, पिलाऊँ।

न छीनो खुशियां हमारी, कोख में न मारो बाबुल प्यारे।।

तुम भी इक बेटी के जाए,
जो तेरी माँ कहलाये,
नौ माह पेट में पाल के तुझको,
सारे कष्ट उठाये।।

रातों सोई ना बिचारी, कोख में न मारो बाबुल प्यारे।

बेटी त्याग का नाम है बाबुल,
सुनिए और समझिए।
दो घर की जिम्मेदारी लेती,
बोझिल नही समझिए।

बेघर होती है बिचारी, कोख में न मारो बाबुल प्यारे।

भैया तुमको भूल भी जाएं,
मैं नही भूलूँ पापा।
डांट, पीट, फटकारों कितना,
न खोऊँ अपना आपा।

बुढ़ापे की लाठी हूँ तुम्हारी, कोख में न मारो बाबुल प्यारे।।

प्रशान्त कुमार"पी.के."
पाली हरदोई (उप्र)
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