...

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किसने आहटें कर दीं..
किसने दर पर हैं आहटें कर दीं!
तेज़ दिल की ये धड़कनें कर दीं!

दश्ते दिल सब्ज़ हो उठा फिर से,
आपने कुछ यूँ बारिशें कर दीं!

थी उदासी फ़क़त मिरे घर में,
आप आए तो रौनकें कर दीं!

उन की नज़रों ने यूँ तराशा मुझे,
जों ख़ुदा ने इनायतें कर दीं!

उसकी चाहत में, मैं हूँ वारफ़्ता,
लो बयाँ मैंने, हसरतें कर दीं!
© parastish

दश्त-ए-दिल = दिल का रेगिस्तान
सब्ज़ = हरा
वारफ़्ता = बेसुध, बेखु़द
2122 1212 22/112
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