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मै "मै" हूं......!
मै चन्दन से महकते इत्रसी....!
मै हूं कुछ महके सफेद फुलोसी...!
मै हूं कनक समान कांचन सी .....!
नित निल गगन के छायासी ...!
मै हूं गंगा के जल धारा सी ....!
बहुत गहराई है मुझमें....!
कुछ गुलाबो के फूलों सी ...!
काटे भी है मुझमें चुभते जो कभी कभी...!
कितने गीले शिकवे है जमाने को मुझमें ...!
मुझे किसी का ख्वाब नहीं....!
मासूम...!
मै हूं कुछ महके सफेद फुलोसी...!
मै हूं कनक समान कांचन सी .....!
नित निल गगन के छायासी ...!
मै हूं गंगा के जल धारा सी ....!
बहुत गहराई है मुझमें....!
कुछ गुलाबो के फूलों सी ...!
काटे भी है मुझमें चुभते जो कभी कभी...!
कितने गीले शिकवे है जमाने को मुझमें ...!
मुझे किसी का ख्वाब नहीं....!
मासूम...!
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