...

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तुझे सोचने का मज़ा ही कुछ और है
तुझे सोचने का मज़ा ही कुछ और है
यूँ तो काफी कुछ है सोचने के लिए पर ,
तुझे सोचने का मज़ा कुछ और है ।
इतने काम पड़े है बाकी पर,
तुझे सोचने का मज़ा कुछ और है ।
जिधर जाना होता उधर की बजाय कहीं और ही पहुंच जाता हूं मैं पर क्या करूँ ,
तुझे सोचने का मज़ा कुछ और है ।
माँ पूछती रहती है क्या पूरे समय दीवार पर देखता रहता है
अब उन्हें क्या बताऊँ की
तुझे सोचने का मज़ा कुछ और है ।
सीधी साधी ज़िन्दगी चल रही थी सब उलझ गया तेरे आ जाने से पर क्या करूँ ,
तुझे सोचने का मज़ा कुछ और है ।
- Palash Jethaliya
© Palash Jethaliya (Doctor sonnet )