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हमारी ख़ता थी क्या - ग़ज़ल
हमारी ख़ता थी क्या जो हम मजबूर रहे
महरूमी-ए-क़िस्मत हम ही उनसे दूर रहे

वो थी हमनशीन सब उसके पास आते थे
हम ही बा-ख़ुदा गुमनाम थे, वो मशहूर रहे

क्या था जो अब तलक चाहते रहे हम
फिर भी हर मशक़्क़त बाद वो मग़रूर रहे

हर दफ़ा तोड़ा उन्होंने नादान दिल था हमारा
क्या करते! हम तो ख़ुद हमेशा मजबूर रहे

वो खेलती रही दिल से खिलौनों की तरह
फिर भी रहा 'प्रेम' बेवफा, वो बेकसूर रहे।

© Premyogi
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