...

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संघर्षपूर्ण जीवन
जीवन में था तो कुछ नहीं,
चाहत थी मौत की।
प्यास थी दो बूंद की, लेकिन नसीब में मिला तलाब
अब तलाश है सागर की।
जिन्दगी समय के साथ मोड़ बदलती रही,
आगे बढ़ने की उम्मीदें जगती रही ।
मंजिल सोचा है ऊंचा पर डगर हैं कठिन,
पहुंचना है बहुत दूर लेकर मजबूत इरादे,
लेकर सभी को साथ हम चलेंगे,
उतार चढ़ाव के इस सफर में,
हासिल करेंगे उच्चाईयो के उस मुकाम को छोड़कर सारी मुसीबतें।
written by kashish arya
dedicated to my father Mr Ram Niranjan Diwakar