अरज हमारी
यदि शरीर मात्र एक परिधान है
तो जीवन सीमा थोड़े रखना
पर हे केशव ! मेरे स्नेह धागे को
तुम आपस में ही जोड़े रखना
ये वो धागे हैं मीत मेरे !
मेरे मन को जिसने बाँध लिया है
स्नेह अमृत का घूँट पिलाकर
मुझे साँसों का वरदान दिया है
मेरी चाहत की फ़ेहरिस्त बड़ी है
कोई असर नही गर पुर्ण ना हों
पर हे माधव ! कुछ ऐसे भी हैं
जिसके बगैर जीवन परिपूर्ण ना हो
अगर वो स्वप्न अधुरे रह जाते हैं
जीवन सीमा तक आते-आते
एक मद्धम सी लौ जलाए रखना
अपनों से प्रीत बनाए रखना
जब नया परिधान धारण कर जन्मू
उस लौ से मन आलोकित हो
हे मनमोहन ! जो प्रिय है मुझको
मेरा जीवन उन्हें समर्पित हो ।
तो जीवन सीमा थोड़े रखना
पर हे केशव ! मेरे स्नेह धागे को
तुम आपस में ही जोड़े रखना
ये वो धागे हैं मीत मेरे !
मेरे मन को जिसने बाँध लिया है
स्नेह अमृत का घूँट पिलाकर
मुझे साँसों का वरदान दिया है
मेरी चाहत की फ़ेहरिस्त बड़ी है
कोई असर नही गर पुर्ण ना हों
पर हे माधव ! कुछ ऐसे भी हैं
जिसके बगैर जीवन परिपूर्ण ना हो
अगर वो स्वप्न अधुरे रह जाते हैं
जीवन सीमा तक आते-आते
एक मद्धम सी लौ जलाए रखना
अपनों से प्रीत बनाए रखना
जब नया परिधान धारण कर जन्मू
उस लौ से मन आलोकित हो
हे मनमोहन ! जो प्रिय है मुझको
मेरा जीवन उन्हें समर्पित हो ।