वक्त का पहिया
वक्त का पहिया धीरे धीरे
कहां से कहां बढ़ गया
मैं वही हूं खड़ी हुई
जैसे कोई पत्थर बन गया
कोई नहीं आएगा मुझको तारने
ये कलयुग है साहब...जो बना...
कहां से कहां बढ़ गया
मैं वही हूं खड़ी हुई
जैसे कोई पत्थर बन गया
कोई नहीं आएगा मुझको तारने
ये कलयुग है साहब...जो बना...