...

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" बस यूँ ही "
बस यूँ ही.....
खयालों-खयालों में,
उड़ चला मन मेरा,
अंधेरे से उजियारों में,
लगाकर पंख,
परियों के देश चांद-सितारों में,
जहाँ बस मिले सुकून,
सागर के शांत किनारों में,
और किनारों से दिखने वाले,
मनमोहक नज़ारों में,
बस यूँ ही....
खयालों-खयालों में!

एक दिन जा बैठा ये,
कवियों के मुशायरानों में,
और खो बैठा दिल अपना,
एक लेखक के अरमानों में,
ना पूछो उनका नाम-पता,
वो हैं ऊँचे घरानों में,
गुस्ताख दिल घुल-मिल जाता है ये,
अनदेखे-अनजानों में,
बस यूँ ही.....
खयालों-खयालों में!

भाया इसको भोला सा दिल,
सारी दुनिया के खजानों में,
ना मन मीरा, ना राधा का,
फिर भी है पहचान इसकी दीवानों में,
खोल पिंजर भरे उड़ान,
ये ऊंचे आसमानों में,
पंछी रूपी मन ये मेरा,
गिनती है इसकी नादानों में,
बस यूँ ही.....
खयालों-खयालों में!

बिन टिकट कटाए घूम आया है ये,
स्विट्जरलैंड के बागानों में,
बिन शरीर के करता है विचरण,
सारे ही जहानों में,
समझाती मन को लग जा यार,
सिर्फ और सिर्फ भगवानों में,
पर अगले ही पल उलझ जाता है ये,
लाइक-कॉमेंट के शुक्रानों में,
बस यूँ ही.....
खयालों-खयालों में!

© Shalini Mathur