पहले से ज़्यादा…
जब रेत को मुट्ठी में भरते है सोचते हैं भर लिया है
अब, अपनी हैसियत से ज्यादा
गुमान होता है अपनी गहरी कमाई पर
धीरे धीरे ऐसा लगता है पाने के भ्रम में खो दिया है सब
, कंगाल हो गए हैं पहले से भी...
अब, अपनी हैसियत से ज्यादा
गुमान होता है अपनी गहरी कमाई पर
धीरे धीरे ऐसा लगता है पाने के भ्रम में खो दिया है सब
, कंगाल हो गए हैं पहले से भी...