...

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शर्तहीन होता है प्रेम
मैं
तुम्हारे
खातिर
खुद
को
कितना
बदलू
मेरी
अपनी
भी
एक
परिभाषा
है
मेरी
अपनी
भी
एक
आदत
है
अपना
एक
नेचर
है
सिंगनेचर
है
इन
सबको
मैं
कितना
बदलू
प्रेम
के
खातिर
मैं
कितना
समझौता
करूं
मै
जैसा
था
वैसा
हूं
और
रहूंगा
शर्तों
में
बंधकर
मैं
प्रेम
नहीं
करता


© Sudhirkumarpannalal Pratibha