...

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"सुर्ख" सांझ
#सांझ
सांझ को फ़िर निमंत्रण मिला है
दोपहर कल के लिए निकला है
अब उठो तुम है इंतजार किसका
पर्दा हटाओ देखो बाहर ढेर लगा है
लाशों का।

हाँ मानवता को फिर घाव लगा है
शहर का हर पाषाण रक्त से सना है।
कहीं मांस के टुकड़े, कहीं कपड़ों से मज़हब
ना बता सके- ऐसी भस्म का ढेर अटा है।
कम-स-कम अब तो उठो तुम है
इंतजार किसका?
पर्दा हटाओ बाहर ढेर लगा है
लाशों का।

जिसका नाम ले "संस्कारी" असुरों
ने ये कुकृत्य किया, स्वयं उस
नियंता¹ का हृदय दहला है।
जाति? मज़हब? चमड़ी? भाषा?
क्या कारण कहूं उस बिलखते
नन्हे से जिसके कुटुंब का अवशेष
तक न मिला है??


सांझ को फिर रक्तरंजित निमंत्रण मिला है
दोपहर फिर नरसंहार को निकला है
टूट गया हूं, अब उठो तुम है इंतजार
किसका
पर्दा हटाओ देखो बाहर ढेर लगा है
लाशों का।।


(नियंता= creator= God)
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© sunitanandhinee