...

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वो गलतपेह्मी
जो ख्वाब बनकर था वो आया,
जो वक्त था साथ उसने बिताया,
लम्हा था खूबसूरत बेहद,
सोचने पर किया मजबूर मुझे-" क्या है पाया"।
वह चाहना था,
या था भ्रम का ढोना
थी गलतफहमी
या उससे इशक का ऐहसास होना।
था एक आदत सा,
या फिर कोई मोह
खोने का डर था
और डर यह भी था कही चाहने ना लगे वह।
क्या हैं केहर किस्मत ने ढाया,
क्यों है उसे मुझसे मिलाया,
संयोग ही है शायद इस मुलाकात का राज़,
फिर भी ज़िद पर अड़ा है दिल आज।
क्यों मान रहा हैं दिल सच इस सपने को,
किस बात का है अफ़सोस बुनने को।
जो हो ही नहीं सकता सच
एक ऐसा सपना तूने है देखा,
था गलतफहमी का बीज तूने ही रोपा।
एक हसीन याद बना ले उन लम्हों को,
उन यादों की खुशहाली से भर दे सारे घमों को।


© soumi's_here