...

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मौसम -ए-बहार
ज़ुबां से तो न वो कभी इकरार करते हैं,
नज़रों से लेकिन सदा इज़हार करते हैं।

आते हैं जब वो सामने सिंगार करके,
कैसे बताएं कि दिल पर वार करते हैं।

दुआ तो देते हैं हमको अच्छे रहने की,
लेकिन अदाओं से अपनी बीमार करते हैं।

दिल में आग लगाते है ये नासमझ ख़्वाब,
हर साँस में याद उनको हज़ार बार करते हैं।

झाँक कर देखा है जब भी उनकी आँखों में,
शर्मा कर सुर्ख वो लब-ओ-रुखसार करते हैं।

ऐ काश कि आज वो कर लें ज़ुबां से इकरार,
मौसम-ए- बहार का हम भी इंतजार करते हैं।