...

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आँखों का पोखर
देखा है मैने
दरख्तों को करते हुए श्रृंगार
हरे लिबास में मुस्कुराते हुए
कितने सुंदर लगते है
चिड़ियों को पनाह देते हुए

तो कभी सरसराती बदहवास
चीरती हुई हवाओ से
नग्न हुए दरख्तों की
वीरानी भी देखी है
कसक --चाहत-- इंतजार
एक नए कलेवर पाने की
जब शायद वे एक बार
फिर जी उठेंगे !

क्या तुमने देखा है कभी
पोखर की उन हरी हरी आंखों में !
रहस्यमयी कोई संसार समेटे हुए
शायद इसमें भी कोई जीवन पलता है
हा...
पोखर के...