...

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वसन्त
हे वसंत तू आ जाना,
संग नई खुशियाँ ले आना।
लख-लख तकती सारी अखियाँ,
आ के उनमें समा जाना ।

तरुवर देखें राह तुम्हारी,
कब तुम उन पर आओगे।
कलियाँ कलियाँ हे बेताब,
तुम झलक कब दिखलाओगे ।
उनकी दूर कर बैचेनी,
तन मन को महका जाना।
हे वसंत तू आ जाना ----।


वन उपवन को संगीत भ्रमर से,
शोभायमान तुम होने दो ।
खग वृन्दों के मृदु नव स्वर से,
गुंजायमान तुम होने दो।
प्रकृति के बहुरंगे फूलों से धरती का,
श्रृंगार तुम कर जाना ।
हे वसंत तू आ जाना ------।

मौसम देखे राह तुम्हारी,
तुम गुनगुनी करवट दिला जाओ ।
हो गया सीत से जन जन बैचेन ,
उन में नयी उमंग जगा जाओ ।
उनके जमे हुए जीवन में,
स्फूर्ति की लहर जगा जाना ।
हे वसंत तू आ जाना -------।

पलाश के पेड़ों ने तो,
दावानल की, याद दिला डाली ।
वे तो अपनी सुंदरता से,
सब के मन को खींचे आली ।
तुम भी इस मौसम को और,
भी मदमस्त बना जाना।
हे वसंत तू आ जाना ---- ।

तन पर ओढ़े पीली चादर,
सरसों हुई सयानी सी ।
पीत वसन से लिपटी दुल्हन,
गूँज उठी शहनाई सी ।
सरसों बैठी तैयार चने तुम,
नीली पाग लगा कर आ जाना ।
हे वसंत तू आ जाना ------।

वैष्णो खत्री वेदिका ©®