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कविता की खोज में
देख रहा हूँ इस जग को
कैसे मैं इज़हार करूं
पूरे जग में ढूंढ रहा हूँ
आखिर किस किस पे अहसास लिखूं

लिखूं मैं उस मृत्यु पर
जिस सच को कोई बदल नहीं सकता
या फिर उस जिंदगी पर
जिसे कोई समझ नहीं सकता

उस अकेलेपन पर
जिसमे सिर्फ तनहाई ही होती है साथ
या किसी साथ पर
जिसकी अलग ही होती है बात

उस पर्वत पर
जो बादलों के पास है
लेकिन खुद को अकेला पा कर
मन ही मन उदास है

लिखूं उस वक्त पर
जो हर परिस्थिति दिखा जाता है
कभी हसा देता है, कभी रुला देता है
जीवन का हर पहलू सिखा जाता है

एक मंज़िल ऐसी
जिसकी सबको...