...

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“ओ मेरी जान-ए-वफ़ा अब साथ न चल”
ओ मेरी जान-ए-वफ़ा, अब मेरे साथ न चल,
तू अमानत है किसी और की मेरे साथ न चल,

अब मेरा प्यार तेरे प्यार का हक़दार नहीं,
तेरी चाहत के चमन का तलबगार नहीं,

अब किसी और के शानों पे है तेरा आँचल,
लोग रुसवा कर देंगे यूँ मेरे साथ न चल..

तेरी चाहत से मैं खुद का आशियाँ बसाऊं कैसे,
मैं तेरी मांग को सितारों से सजाऊँ कैसे..

मेरी क़िस्मत में नहीं है तेरे प्यार की ख़ुशबू शायाद,
तू हाथों की लकीरो को बदलने की कोशिश ना कर,

अब कहाँ मेरा ठिकाना है कहाँ तेरा शजर,
मेरी परवाज़ नहीं अब तेरी पनाहों तक..

अब किसी और की बाहों में है ठिकाना तेरा,
लोग रुसवा कर देंगे यू मेरे साथ न चल.. ।।