...

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चार दिन के, दो पल थे
बेकल से जो कल थे
चार दिन के, दो पल थे

एक टूटा हुआ तारा
लिए हसरतें, संभल के

टकराया कुछ तरह यूँ
ख़्वाबों के किसी पटल पे

जैसे बुलबुले दरिया के
बहते, बनते और बिगड़ते

जैसे आँखों में सजी हो
एक उम्र, उम्र से गुज़र के

कोई लम्हात देखे है चाँद
राहों में यूँ बिखर के

जैसे बेकल से जो कल थे
चार दिन के, दो पल थे



© paras