...

11 views

#छूटती सांसे
वक़्त कब ठहर जाए कोई पता नही
अपने रूठ जाए तो उनकी कोई खता नही
मुकद्दर का खेल होता है मोहब्बत में फतह कर जाना
बेवफाई से वफ़ा हार जाए तो हैरत की कोई बात नही
वक़्त कब ठहर जाए कोई पता नही ।।
अंधेरो में रहकर उजालों की अब कोई आस नही
खुलकर जी लूं जो जमाने मे ,बची अब ज़िस्म में सांस नही
अश्क़ बहाना भी तो अब लाज़िमी लगता नही
रूह से बेजान हूँ,उसके चले जाने से
क्यो जियूँ जब सांसों में कोई आवाज़ नही
वक़्त कब ठहर जाए कोई पता नही ।।
वक़्त की हर एक शय का गुलाम हूँ मैं
बादशाहत की अब कोई आस नही
बेहिश हो चला है ज़िस्म मेरा उसकी मोहब्बत में
गैर को क्यो अपनाऊ ,अपना जब मेरे अब पास नही
वक़्त कब ठहर जाए कोई पता नही ।।
ख्वाहिशे जो कभी ख्वाब देखा करती थी एक हमनवां के
मुकम्मल हो जाये जो हर तलब मेरी,ऐसी अब कोई चाहत नही
कर लूं दफीने से पहले मौत की तैयारी अब
कब रूह निकल जाए ज़िस्म से,वक़्त का भी तो पता नही
जा रहे है मोहब्बत में नाकाम होकर
जीने की अब अपनी कोई आख़िरी ख्वाहिश नही
वक़्त कब ठहर जाए कोई पता नही ।।
✍️Imran ilahi
from meerut 7983392711