#छूटती सांसे
वक़्त कब ठहर जाए कोई पता नही
अपने रूठ जाए तो उनकी कोई खता नही
मुकद्दर का खेल होता है मोहब्बत में फतह कर जाना
बेवफाई से वफ़ा हार जाए तो हैरत की कोई बात नही
वक़्त कब ठहर जाए कोई पता नही ।।
अंधेरो में रहकर उजालों की अब कोई आस नही
खुलकर जी लूं जो जमाने मे ,बची अब ज़िस्म में सांस नही
अश्क़ बहाना भी तो अब लाज़िमी लगता नही
रूह से बेजान हूँ,उसके चले जाने से
क्यो जियूँ...
अपने रूठ जाए तो उनकी कोई खता नही
मुकद्दर का खेल होता है मोहब्बत में फतह कर जाना
बेवफाई से वफ़ा हार जाए तो हैरत की कोई बात नही
वक़्त कब ठहर जाए कोई पता नही ।।
अंधेरो में रहकर उजालों की अब कोई आस नही
खुलकर जी लूं जो जमाने मे ,बची अब ज़िस्म में सांस नही
अश्क़ बहाना भी तो अब लाज़िमी लगता नही
रूह से बेजान हूँ,उसके चले जाने से
क्यो जियूँ...