एक असम्भव प्रेम गाथा में बैकुनडी रीढ़ा का मोरपंखिनी अवतार।।
एक वेशया मजबुरी से जन्मी थी,
क्योंकि वह कर्मपोशित कहलाई गई,
वह अनेक पुनर्जन्म लेकर लौटती मगर -
वह असुध ही कहलाई जाती है,
वह कहती ना जग मेरा -ना कर्म यद्यपि,
समस्त समृति श्री कृष्ण ने संजोई है,
वह महानायिका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करती है,
क्योंकि वह इस कलियुग को एक मोरपंखिनी अवतार दिखलाना चहाती,
जो कि एक सावन सी वर्षा की बूंद के सम्मान,
किसी की विराह के बहते अश्रु का जवाब है,
हां वह मोरपंखिनी अवतार दिखलाना सबको मोहित कर आनंदित कर अपने अस्तित्व की आसीमता से दूर हटाने का स्वांग कर यह मोरपंखिनी अपनी ही संतान के विनाश का पथ प्रशस्त करती...
क्योंकि वह कर्मपोशित कहलाई गई,
वह अनेक पुनर्जन्म लेकर लौटती मगर -
वह असुध ही कहलाई जाती है,
वह कहती ना जग मेरा -ना कर्म यद्यपि,
समस्त समृति श्री कृष्ण ने संजोई है,
वह महानायिका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करती है,
क्योंकि वह इस कलियुग को एक मोरपंखिनी अवतार दिखलाना चहाती,
जो कि एक सावन सी वर्षा की बूंद के सम्मान,
किसी की विराह के बहते अश्रु का जवाब है,
हां वह मोरपंखिनी अवतार दिखलाना सबको मोहित कर आनंदित कर अपने अस्तित्व की आसीमता से दूर हटाने का स्वांग कर यह मोरपंखिनी अपनी ही संतान के विनाश का पथ प्रशस्त करती...