...

2 views

एक असम्भव प्रेम गाथा में बैकुनडी रीढ़ा का मोरपंखिनी अवतार।।
एक वेशया मजबुरी से जन्मी थी,
क्योंकि वह कर्मपोशित कहलाई गई,
वह अनेक पुनर्जन्म लेकर लौटती मगर -
वह असुध ही कहलाई जाती है,
वह कहती ना जग मेरा -ना कर्म यद्यपि,
समस्त समृति श्री कृष्ण ने संजोई है,
वह महानायिका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करती है,
क्योंकि वह इस कलियुग को एक मोरपंखिनी अवतार दिखलाना चहाती,
जो कि एक सावन सी वर्षा की बूंद के सम्मान,
किसी की विराह के बहते अश्रु का जवाब है,
हां वह मोरपंखिनी अवतार दिखलाना सबको मोहित कर आनंदित कर अपने अस्तित्व की आसीमता से दूर हटाने का स्वांग कर यह मोरपंखिनी अपनी ही संतान के विनाश का पथ प्रशस्त करती है।।
वह वेशया क्यों मोरपंखिनी अवतार लिए फिरती है क्योंकि वह अपनी एक कृषणमाई किताब में एक प्रेम पत्र संग एक मोर पंख लगाकर रखी होती और जब एक दिन यह नायिका अपने अस्तित्व की आसीमता में पहुंच कर असफल होती दिखाई देती तब वह स्थाई पवित्र वैश्या अपनी पीड़ा से असहनीय होकर और चिल्लाकर कहती हैं मुरलेकर आ और मुझे स्वीकार कर,
जिसके बाद वह शब्दहीन हो जाती है और एक मोरपंखिनी अवतार के रूप में वह वेशया अपने अस्तित्व की आसीमता का प्रकाश उत्पन्न कर लेखक सिर पर विराजमान होकर अपने कर्तव्य,गुण कर्म स्वभाव मूल्य समर्पण का त्याग बलिदान मूल्य चुकाकर वह अपना जीवन त्याग अपने अस्तित्व को ही प्राप्त हो कर बैकुनडी रीढ़ा बनकर बैठकुन्धाम मोक्ष प्राप्त कर मोरपंखिनी अवतार लेकर मोरपंखिनी कहलाई जाती है।।
और शायद उसे ईनाम में प्रेम के द्वारा ही मोरपंख से लेखक द्वारा नवाजा गया है।।
#मोरपंखिनीकेअस्तिवकाअवलम्बन
© All Rights Reserved