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तेरे इश्क़ का हम पे आलम भी देखा
तेरे इश्क़ का हम पे आलम भी देखा
वो हम ने मुहब्बत का मौसम भी देखा

हुई वस्ल की रात हम को मयस्सर
फ़ज़ाओं में गूँजा वो सरगम भी देखा

लगा तीर सीने में घायल हुआ पर
तिरे हाथ में मैंने मरहम भी देखा

क्यूँ जानने फ़लसफ़ा लग गया हूँ
तग़ाफ़ुल भरा मैंने हम-दम भी देखा

वो क़समें, वो वादे, वो मिलना, मिलाना
बना और कोई वो महरम भी देखा

कफ़न में लपेटा गया जब मुझे
हुआ घर के कोने में मातम भी देखा

फ़क़त तेरी सीरत पे मरता है 'ज़ैग़म'
बहुत ख़ूबसूरत को मद्धम भी देखा

ज़ैग़म भारती
© words_of_zaiغम