...

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याद है मुझे

जो मथुरा की गलियां छोड़,
द्वारिका बसाई थी मैने,
आज वही नगरी समुद्र में,
विलीन हो रही है,
वो मथुरा से द्वारिका तक,
हर पल याद है मुझे।

वो यमुना तट पर गोपियों के,
वस्त्र चुराता था मैं,
आज अपनी बहन का,
चीरहरण देख रो रहा हूं,
वो गोपियों से कृष्णा तक,
सब याद हैं मुझे।

वो मथुरा में मुरली की,
मीठी तान बजाई थी मैने,
आज वही मुख महाभारत में,
शंखनाद कर रहा है
वो मुरली से शंख तक,
सब स्वर याद हैं मुझे।

गोवर्धन गिरी उठा गोकुल को,
इंद्र प्रकोप से बचाया था मैंने,
आज सुदर्शन उठाये महाभारत में,
युद्ध करने का दोषी कहला रहा हूं,
गोवर्धन से सुदर्शन तक,
सभी याद है मुझे।

वो गोकुल की मां धेनु से दूर,
हस्तिनापुर आया था मैं,
यहां मां गांधारी के श्राप से,
यदुकुल समाप्त हो रहा है
वो गोकुल से यदुकुल तक,
सब लोग याद है मुझे।

वो द्वारिका में अपनी अर्धांगनी,
रुक्मणि संग रहने वाला,
आज अपने ही रूप,
राधा को खोज रहा है,
वो रुक्मणि से राधा तक,
सब याद हैं कृष्ण को।

हां राधे, मैं गोकुल छोड़ द्वारिका भी आ गया मगर,
द्वारीकेश से अधिक मुझे अपना कान्हा रूप ही याद है।



© Utkarsh Ahuja