...

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मैं धरती मां नहीं,
मैं धरती मां तो नही हो सकती
कि कोई आकर मेरे सीने
छन्नी कर दे
हल चलाकर कण कण अगल कर दे
कोई आए और बीज छिटकर चला जाए
कोई खाद,कोई पानी पटा कर
मुझे छू छू कर छत विछत्त कर दे
फिर भी फसल लहलहा जाए
और एक शाम समूह आए
फसल काट कर ले जाए
वो चुप
सारे दर्द सहकर भी अनपूर्णा
बंजर रहकर भी चुप
इतनी सहने की शक्ति
मुझ में नही
कभी
नही
मैं मां हूं
सहना जानती हूं
सहती भी हूं
पर धरती नही
इसलिए मुझे
आजमाना मत
मैं नारी हूं
हार मांस की बनी
जिसके सीने में एक
दिल धड़कता है।
दर्द होता है
तकलीफ होती है
मैं धरती मां नही
जो चिर कर चले जाओ।।
#अमृता




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