...

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शायद सच में दोस्ती का हक हमारा नहीं।
नम होती हैं आंखे दिल भी नम हो जाता है ,
क्या करे,गम सहा नहीं जाता और और बिना नम हुए आंखे मुझसे रहा भी नहीं जाता।

उदासी चेहरे को घेर लेती पर दिल खुद से हिम्मत करता है , ये मुस्कुराने की हर बार
सलाह दे जाता है।

चेहरे की चमक मानों उड़ सी जाती है।
कुछ लोग मेरी इस हालात हो देखकर
मुस्कुराना चाहते हैं।

दिल कहता है की मुस्कुराने दे
अगर वो अपने है , और गैर है
तो उनके मुस्कुराने से हमारा
क्या जाता है ।

दिल की किताब के पन्नों को
खोलना नहीं चाहती, शायद
सच में दोस्ती का हक हमारा
नहीं।

कुछ खास दोस्त होते है जिस पर
खूब विश्वास किया हो,और
हमारे करुण ममत्व को
वो भी जब भूल जाता है।
जब उनके जीवन में
कोई खूबसूरत चेहरा आता है।

वो भूल जाते हैं की किसी का
हक किस और के हक में लिखा
नहीं जाता है ।

पर फिर मेरा दिल कहता है ,
दोस्त है न वो खुश है तो
थोड़ा दर्द...