9 views
रिहायी
कहीं ज़मीं छोड़ी, कहीं आसमान छोड़ आया,
एक तेरी ख़ातिर मैं सारा जहान छोड़ आया।
एक ये ही हुनर आता था मुझको ज़िंदगी में,
मैं जहाँ भी गया कुछ निशान छोड़ आया।
उड़ न पाया तेरी क़ैद से रिहा हो कर भी मैं,
मैं तेरी गिरफ्त में अपनी उड़ान छोड़ आया।
लगाऊं तो भला अब लगाऊं निशाना कैसे,
तीर तो उठा लाया मग़र कमान छोड़ आया।
कुछ यूं दे कर आया मैं इम्तेहान जिंदगी के,
मुश्किल सवाल कर दिए, आसान छोड़ आया।
दिल्लगी में दिल को, बहुत मिले थे ज़ख़्म,
एहतियातन वो गलियां, वो मकान छोड़ आया!!
© 𐌼я. ∂ιϰιт
एक तेरी ख़ातिर मैं सारा जहान छोड़ आया।
एक ये ही हुनर आता था मुझको ज़िंदगी में,
मैं जहाँ भी गया कुछ निशान छोड़ आया।
उड़ न पाया तेरी क़ैद से रिहा हो कर भी मैं,
मैं तेरी गिरफ्त में अपनी उड़ान छोड़ आया।
लगाऊं तो भला अब लगाऊं निशाना कैसे,
तीर तो उठा लाया मग़र कमान छोड़ आया।
कुछ यूं दे कर आया मैं इम्तेहान जिंदगी के,
मुश्किल सवाल कर दिए, आसान छोड़ आया।
दिल्लगी में दिल को, बहुत मिले थे ज़ख़्म,
एहतियातन वो गलियां, वो मकान छोड़ आया!!
© 𐌼я. ∂ιϰιт
Related Stories
21 Likes
7
Comments
21 Likes
7
Comments