...

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ख़्वाबो की मल्लिका
तारीफ करूं तेरी जिनमें
वो शब्द मुझे मिल नहीं रहे
होंठ तेरे पंखुड़ियां हैं जिसकी
वो गुल और कहीं खिल नहीं रहे!!

आंखें हैं तेरी जैसे झील शराब की
ना रहे होश में जो ले ले इनका जाम
अपना पता क्या याद रहे उसको
जिसे मिल जाए तेरी गली का नाम।।

तेरे बोल निकलते हैं एक मधुर सुर में
जैसे बज रही कोई सुरीली वीणा हो
तरसते हैं मेरे कान सुनने कों तुझको
जैसे मरते हुए किसी को अमृत पीना हो।।

© Dhruv