ख़्वाबो की मल्लिका
तारीफ करूं तेरी जिनमें
वो शब्द मुझे मिल नहीं रहे
होंठ तेरे पंखुड़ियां हैं जिसकी
वो गुल और कहीं खिल नहीं रहे!!
आंखें हैं तेरी जैसे झील शराब की
ना रहे...
वो शब्द मुझे मिल नहीं रहे
होंठ तेरे पंखुड़ियां हैं जिसकी
वो गुल और कहीं खिल नहीं रहे!!
आंखें हैं तेरी जैसे झील शराब की
ना रहे...