...

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सुनो अनजानी
हां याद है मुझे वो दिन
जब हम भी अजनबी थे
तुम भी अजनबी थे
दो पल, दो टूक बातों में
फिर अजनबी हुए

एक अजनबी के रूप में
आखिरी शब्द सुनो
कभी न मांगना तुम
किसी से प्रेम की भीख
सीखा है जीवनपर्यंत
सबसे बड़ी सीख

फिर न पड़े सहना
वो दर्द, जिसे लेके
हर घड़ी रहना पड़े
क्यों कोई बेवजह
दर्द सहे,क्या फर्क
पड़ेगा फिर दिल में
कोई रहे,या फिर न रहे

वो जीवन ही क्या है
जिसमें हर पल घुटकर
जीना पड़े,चलकर साथ
जो बिन बताए राह मोड़े
जब मन किया दामन जो
तुमसे छोड़े,सुनो अनजानी
ये शब्द आखिरी पढ़ो ये
पंक्ति कुछ पूरे कुछ अधूरे।

- अन्वित कुमार

यहां अनजानी वो स्त्री है जिन तक ये संदेश पहुंच रही है वह क्षणिक पाठक रहेंगी और इस संदेश को पढ़कर पुनः अनजानी हो जाएगी परंतु इस संदेश को वह सदैव ध्यान में रखे भले ही वह अनजानी ही रहे। 📖
© Anvit Kumar

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