...

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वो
हदें हुईं ख़त्म उनकी, बे-सुरूर वो हुए,
मौत रही बेनाम मगर मशहूर वो हुए.

सोचा ना था कभी पर वाकया ये यूं हुआ,
क़िस्मत नहीं मेरी मगर दस्तूर वो हुए.

नाशुक्री में है मज़ा, जो भी किया मेरे लिए,
बिन शुक्रिया के भी मेरे मश्कूर वो हुए.

दिल में बसने वाले का फ़ायदा है बस यही,
नज़र नहीं आते मगर मेरे ज़ुहूर वो हुए.

थे सोचते कि जज़्बात लिखें दिल के कैसे,
देखा उन्हें और लफ़्ज़ों के मेरे मंसूर वो हुए.
© अंकित प्रियदर्शी 'ज़र्फ़'

नाशुक्री- धन्यवाद ना देना ( thanklessness)
मश्कूर - आभारी (grateful)
जुहूर - दिखना, प्रकट होता (appearing, manifestation)
मंसूर - बिखरे, अनछुए मोती (pearls)
अर्ज़ किया है.....
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