...

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मर्म
कितनी दूरी है, कितनी काफ़ी है,
तेरे स्पर्श से ही मिलेगी मुझे माफ़ी हे!
क्या करें अब, कैसे पहुंचे तुझ तक
मर्म का भेद ना जाने कोई
क्या करें, राहें हैं बेख़बर
तेरी दृष्टि ही काफी है हमसफर...


© Bikramjit Sen