...

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कश्मकश में शिकस्त!...
ऐ सैलाब तू झंकार न कर
बेताबी के आलम से चिंघाड़ न कर
जख्म पर खार छिड़क न तू
अपनी वफा का आप प्रचार न कर।

वफा कौन? बेवफा कौन?
किसके अश्कों में चालबाजी है?
बददियानती तो सीखी न हमने
शायद मुद्दत में ही फरेबी है।।

ऐ ज्वार तू हाहाकार न कर
न भेद तू इस नीरव चित्त को
कि इस दावे को दफ़न कर बंदे
कहीं मिल न जाए कश्मकश में शिकस्त!