शाम
हैं शाम कही जो ढल जाए,
मैं दिन का उजाला न देखूं;
ये रात कही जो अड़ जाए,
मैं सहर का जादू ना देखूं;
हैं चांद कहें जब मूझसे,
देखो न अभी भोर भई;
रातरानी कि महक हवा में,
हैं रात अभी कुछ और भई;
जब सूरज सुबह को आएगा,
आँख न मिला पाओगे;
मुझसे बहे दूधिया रोशनी,
शीतलता ऐसी कहा पाओगे;
सुनकर ऐसी बातें चांद की,
कानों में शीतल बयार चली;
मैं लेटा पसरकर बिस्तर पे,
आंखों में मेरे नींद जगी ।
मैं दिन का उजाला न देखूं;
ये रात कही जो अड़ जाए,
मैं सहर का जादू ना देखूं;
हैं चांद कहें जब मूझसे,
देखो न अभी भोर भई;
रातरानी कि महक हवा में,
हैं रात अभी कुछ और भई;
जब सूरज सुबह को आएगा,
आँख न मिला पाओगे;
मुझसे बहे दूधिया रोशनी,
शीतलता ऐसी कहा पाओगे;
सुनकर ऐसी बातें चांद की,
कानों में शीतल बयार चली;
मैं लेटा पसरकर बिस्तर पे,
आंखों में मेरे नींद जगी ।