" मेरी महत्वकांक्षा.....
मेरी अधूरी चाह अब पुरी हो रही है,
पानें की मेरी महत्वकांक्षा के साथ,
सुलझ रहीं हैं अब हमारी सारी उलझनें
नये सफ़र की राह में आने के बाद,
क्या दोष दें, किसी को, क्या सही और कौन ग़लत "
अब हम ही सही और हम ही ग़लत, के साथ चल दिए है। अकेले .....
अपनी मर्ज़ी से छूने ...
पानें की मेरी महत्वकांक्षा के साथ,
सुलझ रहीं हैं अब हमारी सारी उलझनें
नये सफ़र की राह में आने के बाद,
क्या दोष दें, किसी को, क्या सही और कौन ग़लत "
अब हम ही सही और हम ही ग़लत, के साथ चल दिए है। अकेले .....
अपनी मर्ज़ी से छूने ...