स्त्री तेरे जीवन का इतवार कहांँ खो गया
जाग रही है अब तक पगली,सारा जहांँ सो गया
बुला रही जो निंदिया रानी,कहती बस हाँ हो गया
चला रही कड़छी बेलन,आटा गूंथे है सातों दिन
स्त्री तेरे जीवन का इतवार कहांँ खो गया
सोती है तू आखिर में,सबसे पहले जगती है
होती है तू पीड़ा में,फिर भी हरदम हंँसती है
करती कोई ख्वाहिश नहीं,करती कोई...
बुला रही जो निंदिया रानी,कहती बस हाँ हो गया
चला रही कड़छी बेलन,आटा गूंथे है सातों दिन
स्त्री तेरे जीवन का इतवार कहांँ खो गया
सोती है तू आखिर में,सबसे पहले जगती है
होती है तू पीड़ा में,फिर भी हरदम हंँसती है
करती कोई ख्वाहिश नहीं,करती कोई...